55 Latest Lafz Shayari

Lafz Shayari

1- कोई है ही नहीं अपना कहने को, अब इससे ज्यादा और क्या कहूँ मैं।

Lafz Shayari

2- मिलकर तुझे चुप रहता हूँ, क्यूंकि लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं तेरी तारीफ के लिए

Lafz Shayari

3- पढ़ने लगा हूँ लफ़्ज़ों के मतलब तब से, जब से लफ्ज़ कम पड़ने लगे हैं तेरी तारीफ के लिए।

Lafz Shayari

4- जो बयां कर सके हुस्न के बनावट को तेरे, ऐसे तो लफ्ज़ बने ही नहीं है।

Lafz Shayari

5- जो कह सकूं लफ्ज़ मिलकर तारीफ़ में तेरी, ऐसे लफ्ज़ मुझे कहाँ मिलेंगे।

Lafz Shayari

6- लफ़्ज़ों के कहने से भरोसा मत किया करो जनाब, लफ़्ज़ों का तो काम ही झूठ कहना है।

Lafz Shayari

7- उतनी तेज़ तो कांच भी नहीं चुभते, जितने तेज़ लफ्ज़ चुभते हैं।

Lafz Shayari

8- मत माना करो कहना लफ़्ज़ों का, की लफ़्ज़ों का तो काम ही झूठ कहना है।

Lafz Shayari

9- लफ्ज़ पढ़ने सीख गए वो, आँखें पढ़ पाए इतने पढ़ाकू नहीं थे वो।

Lafz Shayari

10- आवाज़ अच्छी होने का क्या फायदा जब उनसे निकले अलफ़ाज़ ही बुरे हों।

11- तुम किसी इंसान पर भरोसे की बात कर रहे हो, मुझे इंसान की किसी बात पर भरोसा नहीं है।

12- जुबां गन्दी हो भले मगर दिल साफ़ होना चाहिए।

13- आप कितने पढ़े लिखे है ये आपकी डिग्रियां नहीं आपके अलफ़ाज़ बताते हैं।

14- तुम अल्फ़ाज़ों पर यक़ीन कर रहे हो मुझे आज कल किसी की जुबां पर भरोसा नहीं।

Lafz Shayari

15- रंग और चेहरों तक तो ठीक था अब तो इंसान बातें बदलना भी सीख गया है।

Do Lafz Shayari

16- चयन ऐसा अलफ़ाज़ होना चाहिए, बोलने और सुनने वाले को नाज़ होना चाहिए।

17- अल्फ़ाज़ कम पड़ जाते हैं तारीफ में तेरी, तू इतनी ज्यादा खूबसूरत है सनम।

18- तू वो सूरज है सनम, जिसकी खूबसूरती अल्फ़ाज़ों में ढल नहीं पाती।

19- बस एक लफ्ज़ उन्हें सुनाने के लिए, ना जाने कितने लफ्ज़ लिखे हमने ज़माने के लिए।

Lafz Shayari

20- मेरी जुबां से तुम्हारे आगे दो लफ्ज़ नहीं निकलते, मैं मोहोब्बत के ढाई लफ्ज़ तुमसे कैसे कहूंगा।

21- शिव सा भोला तो कोई नहीं है ज़माने में, मगर सभी अपने गले में ज़हर लेकर फिरते हैं।

22- जो लफ़्ज़ों को मेरे अनसुना करते थे, आज खामोशी भी मेरी सुन नहीं पा रहे।

23- लोग पढ़ते होंगे चार लफ्ज़ तेरी तारीफों में, हमने तो तेरी खिदमत में कसीदे पढ़े हैं।

24- ठीक हूँ मैं इन तीन लफ़्ज़ों के पीछे नाजाने कितने गम छुपाए हैं मैंने।

25-लफ़्ज़ों से लोग बाते पहुंचाते हैं मेरा सनम मुझे चोट पहुंचता है।

26- मोहोब्बत कितनी है ये तो वक़्त ही बताता है लफ्ज़ तो बस बाते बनाना जानते हैं।

27- लफ़्ज़ों से लिखना छोड़ दिया मैंने, अब शायरी मैं अपने दर्द से लिखता हूँ।

28- तेरी खूबसूरती बयां करें लफ़्ज़ों की वो औकात नहीं, तेरी बातों में जो बात है वो बात किसी बात में नहीं।

29- तुझे देखकर खुद बखुद निकलती है तारीफें, फिर ना दिल पर काबू रहता है और ना ही जुबां पर।

30- मेरे हाल बयां कर नहीं पाएंगे अलफ़ाज़, बस इसीलिए आज कल चुप रहता है।

31- जब से दिल टूटा है ये चुप्पी जुबां की टूटती ही नहीं।

32- ठीक हूँ मैं ये झूठे अलफ़ाज़ आज कल हर टूटे दिल की जुबां पर होते हैं।

33- लोग हाल की आड़ में औकात पूछते पूछते है, बेहतर है की इस सवाल पर कुछ naa कहा जाए।

34- मत सुनना अलफ़ाज़ दिल के, वरना कुछ कहने लायक नहीं रहोगे।

35- अब बर्बाद होकर कहाँ जाए, टूटे दिल से अब क्या ही कहा जाए।

36- मैं और कुछ कहना नहीं चाहता सिर्फ बताना चाहता हूँ की मैं तुम्हे कितना चाहता हूँ।

37- लफ़्ज़ों से लक्ष्य प्राप्त नहीं होते कुछ कर दिखाना ज़रूरी है /

38- बिना कुछ कहे भी बिना कुछ कह गए हम, आज फिर उन्हें देख कर भावनाओं में बह गए हम।

39- ऐसा नहीं है की हमे कुछ कहना नहीं आता, बात ये है की आपके आगे हम कुछ कह नहीं पाते।

40- बहुत हो गया लफ़्ज़ों का खेल, अब तो जुबां को चुप रहने दो और आँखों को कहने दो।

41- खामोशियाँ अलफ़ाज़ है तुम सुनकर तो देखो ज़रा।

42- बातों बातों में एक बात फिर रह गई आज, मैं तो चुप ही रहा वो सब कुछ कह गई आज।

43- छोडो भी ये बाटों की बेकार की बातें, आओ बैठकर खामोशी को सुनते हैं।

44- इस चार दिन की ज़िन्दगी में, तुमसे दिल की दो बातें ना कर सके तो फिर क्या फायदा।

45- वो अलफ़ाज़ भी बड़े नाज़ से निकलते है, जो अलफ़ाज़ तेरी तारीफ में निकलते हैं।

46- अलफ़ाज़ जो निकले जुबां से, तो लोगों ने अलफ़ाज़ समझे मगर जज़्बात नहीं।

47- लफ्ज़ बेकरार है बताने को बातें दिल की,मगर दिमाग मुँह को खुलने ही नहीं दे रहा।

48- हर अलफ़ाज़ जो तुझे सोचकर लिखते हैं शायरी बन जाती है।

49- तुमने अल्फ़ाज़ों को सुनकर सर तो हिलाया, मगर उनमे लिपटा हुआ दर्द महसूस नहीं किया।

50- लोग आज कल या तो मतलब की बात कहते हैं या फिर झूठ कहते है।

51- अपनी बातें नहीं हम सिर्फ अलफ़ाज़ से कहते हैं, आखिर शायर है हम अपने अंदाज़ में कहते हैं।

52- अलफ़ाज़ जज़्बात दर्द और आंसू वहीँ बहाइए जहाँ उनकी अहमियत हो।

53- ये जो खामोश से अलफ़ाज़ लिखे हैं ना, पढ़ना कभी चीखते कमाल है।

54- अब अलफ़ाज़ भी कुछ नहीं कहते, जान गए हैं वो भी [आस सुनने वाला कोई नहीं है।

55- कुछ अच्छा कहते हैं तो सिर्फ तेरे लिए कहते हैं हम, कुछ अच्छा लिखते हैं तो तुझपर लिखते हैं।

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